Tuesday, 18 June 2013

उस पर करे खुदा रहम गर्दिश-ए-रोज़गार में अपनी तलाश छोड कर जो है तलाश-ए-यार में


आखिर क्या है इस सुत्र में जिसे पुरे संसार के प्रबुद्ध तथा सत्य को अनुभव करने वालों ने हज़ारो सालों से अब तक बार-बार लगातार दुहराया है. क्युं मनुष्य को अपने भीतर जाने को प्रमुखता देने की बाते होती रहीं हैं. और जिसे कठिन कहा वहीं आसान भी कह दिया. क्या है रहस्य? क्युं भौतिकता और उसका सारा तिलस्म व्यर्थ हो जाता है इस सुत्र के आगे. क्युं जो भी प्रभुत्व को उपलब्ध हुआ उसने भीतर की यात्रा पर जोर दिया? वजह साफ़ है कुछ तो है जो अनंत है, कुछ तो ऐसा है जो ना मिटने वाला है.

अजीब सा लगता है, सब कुछ बाहर दिखाई देता है, ये शानो-शौकत, ये आलिशान बंगले, चमचाती गाडियां, हुस्न की रंगीनियां, पार्टियां, जश्न सब कुछ तो बाहर है फ़िर ये चंद बुद्धत्व को उपलब्ध लोग क्युं कहते हैं कि बाहर नहीं भीतर, खुद के भीतर. रहस्य ये है कि मानो कोई कोमा में हो गहरी नींद में हो और उसके चारो तरफ़ दुनियां की सारी सुविधाओं का अंबार लगा दो क्या होगा? बस यही रहस्य है कि वो सब हमें नींद से कोमा से बाहर लाना चाहते हैं. और जब तुम बाहर आते हो तब सब कुछ जो अर्थ है और तब ये अर्थ महत्वपुर्ण है. हमें अपनी नींद का भी पता नहीं हम खुली आखों वाले सोये हुए लोग हैं, और उसपर भी हद ये कि हमें नींद का पता भी नहीं चलता जब तक की हम जाग नहीं जाते.

एक छोटा सा प्रयोग है जो ये बता ही देगा कि क्या है भीतर जो बाहर की किसी भी चीज़ से ज्यादा अनमोल है.......
दिन भर आप चाहे जो भी करें बस अपनी सांस पर नज़र रखें, देखिए सांस आ रही है. जा रही है. ऐसा बहुत बार होगा कि आपका ध्यान भटक जाएगा, लेकिन कोई बात नहीं फ़िर वापस आप सांस पर आ जाईए. ऐसा ४ से ५ दिन करिये और इसका अद्भूत प्रभाव देखिये.
आज बस इतना ही.
.साधु

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