Saturday 8 June 2013

जब कोई मुझसे पुछता है...

जब कोई मुझसे पुछता है कि परमात्मा ने हमें क्युं पैदा किया? क्युं इस जीवन की आपाधापी में डाल दिया? तो मुझे मनुष्य जीवन की अनंत संभावना को व्यर्थ में खोते देखना सचमुच पीडा से भर देता है.
सच है इस सवाल में कोई बुराई नहीं है, ये स्वाभाविक है. अमुमन हर समझदार व्यक्ति जीवन में कम से कम एक बार इस सवाल से अवश्य उलझता है. सवाल में कोई खोट भी नहीं है. किंतु आश्चर्य की बात ये है कि बुद्धि का जवाब जो भी होगा वो विवादित ही होगा. और इसका जवाब बुद्धि के पास है भी नहीं. जवाब तो मौन के पास है, मौन ही जवाब है. जितना मौन गहरा होगा जितनी आत्मा सघन होगी जवाब लाजवाब होता जाएगा. और जो जवाब होगा वो बुद्धि के समस्त जवाबों से उपर होगा. क्युंकि भीतर का मौन केवल जवाब ही नहीं देता, बल्कि सवालों को भी गिरा देता है. सवाल इस भीतर की सघनता में समाप्त हो जाते हैं. जैसे प्रकाश अंधकार को नष्ट कर देता है जैसे अंधकार कुछ नहीं होता केवल प्रकाश की अनुपस्थिति मात्र होता है, वैसे ही सवाल भीतर के आनंद भीतर की शांति की अनुपस्थिति मात्र है.
भीतर के मौन के निमंत्रण के साथ आज बस इतना ही.
. साधु

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